Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, December 3, 2013

बिखरी कुछ बातें



बिखरे रिश्तों की बातें कुछ ऐसी
जैसे नदिया में खोये मोती
दिन रात गुज़र जाने पर भी
आँखें इनको हैं तकती रहती
कोमल हाथों की सारी नरमी
गर छूकर इनको कुम्हला सा देती
पास तुम्हारे हाथों में आकर
ये सारा जीवन महका सा देतीं

रात दिन एक दूजे के साथी
होकर भी, एक ना हो पाते
सारा जीवन साथ ही चलते
सब कुछ खोकर ही, कुछ पाते
खोना पाना ही तो जीवन है
जिसने समझा सारा जग पाया
इन रिश्तों से सीखा है जिसने
वही सच्चा मानुष कहलाया


(NoteNo part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava

No comments:

Post a Comment