साँसों की, आवाजों की
भूली बिसरी यादों की
दूरियां है दरमियां
वक़्त का मंज़र सामने खड़ा
चीख रहा यूँ,
मुझपर बेइंतेहां
हांथों का कम्पन, वो सर्द सिहरन
याद है मुझे
वो बेतकल्लुफी का समां
रात का डर, मेरा हमसफ़र
कैसे कहूँ,
अकेला है ये जहाँ
नाराज़गी थी मुझसे, तुझे
नहीं है तू
फिर क्यूँ है हर जगह
जन्नत के एहसास की, हर उस बात की
वजह है तू
और मैं हूँ बेवजह
नाकाफी है ये कश्मकश
अब कैसे रहूँ
ज़िन्दगी तेरे बिना
काफिर ये बाहें, ढूंढती निगाहें
कैसे मैं सहूँ
है दर्द की तरह चुभता
तृष्णा, उस खुदा की
लापता मैं फिरूँ
खुद से रिहा
भूली बिसरी यादों की
दूरियां है दरमियां
वक़्त का मंज़र सामने खड़ा
चीख रहा यूँ,
मुझपर बेइंतेहां
हांथों का कम्पन, वो सर्द सिहरन
याद है मुझे
वो बेतकल्लुफी का समां
रात का डर, मेरा हमसफ़र
कैसे कहूँ,
अकेला है ये जहाँ
नाराज़गी थी मुझसे, तुझे
नहीं है तू
फिर क्यूँ है हर जगह
जन्नत के एहसास की, हर उस बात की
वजह है तू
और मैं हूँ बेवजह
नाकाफी है ये कश्मकश
अब कैसे रहूँ
ज़िन्दगी तेरे बिना
काफिर ये बाहें, ढूंढती निगाहें
कैसे मैं सहूँ
है दर्द की तरह चुभता
तृष्णा, उस खुदा की
लापता मैं फिरूँ
खुद से रिहा
बहुत खूबसूरती से भावों को लिखा है ॥
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया||
ReplyDeleteवर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया है, धन्यवाद...आशा है अब सहूलियत होगी...
स्नेहिल जी ... शुक्रिया
ReplyDeleteबृहस्पतिवार को हलचल के ब्लॉग पर पधारें :)
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteकुश्वंश: धन्यवाद, आपके मीठे शब्दों के लिए...
ReplyDeleteअच्छा लिखा है....लयात्मकता अच्छी लगी
ReplyDeleteDr.Nidhi Tandon: Rhythm is only possible in No Rhythm. Thanks!!
ReplyDeleteभावमय रचना है ...
ReplyDeleteदिगम्बर नासवा: शब्दों का साहचर्य यात्रा का सुकून है|
ReplyDeleteधन्यवाद आपके शब्दों के लिए...