या तो तोड़ता, या खुद टूट जाता
पर अपना अंत मैं ना पाता
एक लकीर सी होने से
भगवन शंकर सा रूप पाता
किसी के महल में सज जाता
या किसी मंदिर में पूजा जाता
चन्दन को घिसकर शीतलता पाता
मूर्त रूप होकर ईश्वर कहलाता।
यदि मैं पत्थर होता।
मेरी कठोरता मेरा अहम् होती
जिसे हर पल चकनाचूर किया जाता
मानो तो कोयला तराशो तो हीरा
अपनी चमक पर मैं मुस्कुराता
राम लिख दो मुझपर तो तैर जाता
या फिर खुद से द्वन्द्व कर अग्नि बरसाता
छोटे बच्चों का खिलौना बन जाता
और फिर बार बार, हर बार तोड़ा जाता।
यदि मैं पत्थर होता।
मेरा हृदय भी तो पत्थर ही कहलाता
आघात लगने पर सब सेह जाता
आंसू भी ना बहते, दर्द भी ना होता
धीरे-धीरे मैं और पत्थर होता जाता
काशी में होता तो गंगा साथ होती
मरघट में होकर सिर्फ राख पाता
मिटटी से बनकर, मिटटी में मिलकर
ना जाने और कितने रास रचाता।
यदि मैं पत्थर होता।
कितनी अनूठी ये दुनिया मेरी होती
मेरा नाम लेकर बातें कितनी होतीं
जब भी कोई रोता उसे शक्ति देता
पराजय को जय में बस यूँ ही बदल देता
पानी की कल कल ध्वनि मुझसे होती
जब भी मैं उठता महाप्रलय होती
पर ये सत्य होता तो क्या ना होता?
इंसान ना होता, मैं पत्थर ही होता।
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© Snehil Srivastava
awesome lines...
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