Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, February 9, 2016

सुलझन?
Resolved?

क्या लिख दूँ क्या ना लिख दूँ
मन का सारा सूनापन लिख दूँ।
सरल सलोने भावों को लिख दूँ
कठिन रिश्तों का रूखापन लिख दूँ।
प्रेम सरस की ढेरों बातें
ईर्ष्या द्वेष का बंधन लिख दूँ।
बहती नदिया और उसका मीठा जल
सागर का खारापन लिख दूँ।
तिमिर सरीखी लिख दूँ शीतलता
सूरज की घोर अगन लिख दूँ।
मौन हुई मानवता लिख दूँ
संवेदनाओं का दर्पण लिख दूँ।
थमे हुए इन हाथों को लिख दूँ
खोया चंचल बचपन लिख दूँ।
जीवन लिख दूँ या फिर मृत्यु
या इनमें व्याप्त अधूरापन लिख दूँ।

-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

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