परिंदा तब तक उड़ान में था
जब तक तीर मेरी कमान में था
और फ़िर.…
वो उड़ता रहा, मैं देखता रहा
दूर तक फैला नीला आकाश और उसके पंख
इक बार सोचा कर दूँ
उसका हर अंग छिन्न-भिन्न
आते रहे विचार यूँ ही अभिन्न
इस वक़्त की मुश्किल दौड़ में
जब 'पंख' हैं उसके पास-
तो क्यूँ ना उड़ने दूँ उसे
ना टूटे उसका विश्वास
तभी,
कही दूर से एक तीर ने आकर
बींध दिया उसको
आकाश से सीधा ज़मीन पर गिराकर
'वो' तड़पाता रहा मुझको
मेरे चहरे की सारी लालिमा
परिंदे के शरीर से छिटक रही थी
और मेरे विचारों की आंधी
कहीं बहुत अन्दर घुट रही थी
अब रह गया था तो बस,
कमान में पड़ा हुआ तीर
और मृत परिंदा!
कहने को तो-
परिंदा तब तक उड़ान में था
जब तक तीर कमान में था।
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© Snehil Srivastava
very beautiful lines...
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