यूँ धीमें धीमें क़दमों से चलकर
पहुंचा हूँ अब तमस के और करीब
उन रस्तों की यादों में गुथी हैं
ना जाने कितने काटों की टीस
रौशनी सी चमक उठती थी रिदय में
हर एक ठंडी आह के साथ
पैरों की चुभन लगती थी मीठी
तुमको पाने की हर चाह के साथ
तुम लक्ष्य हो हे 'जीवन' प्रिये
पाना है तुमको मृत्यु के साथ
इस नश्वर धरा के हर कण में हो तुम
कैसा है ये मुश्किल प्रहास
तुमपर हो तर्पण अब ये जीवन,
तमस में छिपा ये सुन्दर गात
देना, है पाना समझा हूँ अब मैं
कैसा था ये प्रश्न अज्ञात!
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© Snehil Srivastava
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