Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Friday, October 25, 2013

अंततः Life, at last


यूँ धीमें धीमें क़दमों से चलकर
पहुंचा हूँ अब तमस के और करीब
उन रस्तों की यादों में गुथी हैं
ना जाने कितने काटों की टीस

रौशनी सी चमक उठती थी रिदय में

हर एक ठंडी आह के साथ
पैरों की चुभन लगती थी मीठी
तुमको पाने की हर चाह के साथ

तुम लक्ष्य हो हे 'जीवन' प्रिये

पाना है तुमको मृत्यु के साथ
इस नश्वर धरा के हर कण में हो तुम
कैसा है ये मुश्किल प्रहास

तुमपर हो तर्पण अब ये जीवन,

तमस में छिपा ये सुन्दर गात
देना, है पाना समझा हूँ अब मैं
कैसा था ये प्रश्न अज्ञात!


(NoteNo part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)

© Snehil Srivastava

No comments:

Post a Comment