बस लिखने की ही तो बात है,
कुछ शब्दों को इन कोरे पन्नो पर उकेरने की
कुछ भावनाओं को इन काली रातों से छीनने की|
हर उस आंधी ने ऑंखें कर दी थीं बंद
और हो गयी थी जब मेरी सांसें मंद
तब तुमने कहा था-
बस लिखने की ही तो बात है|
तरह तरह की वर्जनाएं सिमटी सी थीं मुझमें
ना जाने मानवों की कैसी थीं ये किस्में
थम जाने को जी चाहता था बस यूँ ही
और रह गयी थीं ना जाने कितनी बातें अनकही
तब तुमने कहा था-
बस लिखने की ही तो बात है|
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