Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, February 10, 2015

तुझे देखा था कहीं
The glimpse!

मेरे शेर तेरी इल्तज़ा ये मासूम मोहब्बत
सयाने हो चले हैं वक़्त के साथ चलते चलते
इन्हें समझना इतना भी मुश्किल ना होता
रात तो आती ही है बस दिन ढलते ढलते

ज़र्द हुआ नस नस में बसा तेरा सुरूर ऐ हसीन कातिल
तुझे देखा था मैंने ख्वाबों में मेरे साथ चलते
तेरा सर झुका के यूँ बैठना मुझे गंवारा नहीं
मैंने कहीं देखा है मोहब्बत की शमां को जलते

Picture credit: www.myloveforyou.typepad.com
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© Snehil Srivastav

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