मेरे शेर तेरी इल्तज़ा ये मासूम मोहब्बत
सयाने हो चले हैं वक़्त के साथ चलते चलते
इन्हें समझना इतना भी मुश्किल ना होता
रात तो आती ही है बस दिन ढलते ढलते
ज़र्द हुआ नस नस में बसा तेरा सुरूर ऐ हसीन कातिल
तुझे देखा था मैंने ख्वाबों में मेरे साथ चलते
तेरा सर झुका के यूँ बैठना मुझे गंवारा नहीं
मैंने कहीं देखा है मोहब्बत की शमां को जलते
Picture credit: www.myloveforyou.typepad.com
सयाने हो चले हैं वक़्त के साथ चलते चलते
इन्हें समझना इतना भी मुश्किल ना होता
रात तो आती ही है बस दिन ढलते ढलते
ज़र्द हुआ नस नस में बसा तेरा सुरूर ऐ हसीन कातिल
तुझे देखा था मैंने ख्वाबों में मेरे साथ चलते
तेरा सर झुका के यूँ बैठना मुझे गंवारा नहीं
मैंने कहीं देखा है मोहब्बत की शमां को जलते
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© Snehil Srivastav
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