उड़ान और कहीं गहरे में छिपी पहचान
मखमली उजाले सी महक उठते हैं
जब भी कभी टूटता हूँ मैं
बिखरता भी हूँ टूटकर कई बार तो भी
स्वेछा से कुछ होना
बेमतलब तो नहीं होता
पर सुकून हर बार मिले
शर्त भी तो नहीं कोई इसकी
मखमली उजाले सी महक उठते हैं
जब भी कभी टूटता हूँ मैं
बिखरता भी हूँ टूटकर कई बार तो भी
स्वेछा से कुछ होना
बेमतलब तो नहीं होता
पर सुकून हर बार मिले
शर्त भी तो नहीं कोई इसकी
टूटना, बिखरना, बिखरकर फिर जुड़ना
नितांत परिवर्तन का द्योतक है
जो स्थिर है, अटूट है, सत्य है
नियति उड़ने में है, छिपी पहचान को पाना है
हो जाये यदि ऐसा
जैसे अनवरत चलते चले जाना हो
पर हर बार मुरझाये फूल खिले
शर्त भी तो नहीं कोई इसकी
नितांत परिवर्तन का द्योतक है
जो स्थिर है, अटूट है, सत्य है
नियति उड़ने में है, छिपी पहचान को पाना है
हो जाये यदि ऐसा
जैसे अनवरत चलते चले जाना हो
पर हर बार मुरझाये फूल खिले
शर्त भी तो नहीं कोई इसकी
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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