Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, May 3, 2016

दर्पण का जीवन
The imaginary world of a mirror


वो एक विहंगम दृश्य था
मनुष्य, दर्पण सदृश्य था
वो सत्य था, घनघोर बहता रक्त था
उसका प्रतिरूप मौन था
आखिर! वो आखिर कौन था?
उसमें मर्म था, जाने ये कैसा कर्म था?
उनकी दिशाएं एक थीं
किन्तु एक-दूसरे के विपरीत थीं।
दर्पण वो अपने दर्प में
ना जाने किस सन्दर्भ में
खुद से अलग अब हो गया
अपनी मनुष्यता खो गया
निर्जीव है, स्वयंभू होकर भी
जीवित भी होगा, लगता नहीं
दर्पण का जीवन, पूर्ण है
मनुष्यत्व जैसा अपूर्ण है।


-Snehil Srivastava
Picture credit: www.freewords.com.br
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© Snehil Srivastava

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