मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
जिनमें सपनों की सीपियाँ, कुछ उजले मोती भी सजाये
नंगे पैरों पर खारेपन की चादरें,
कि जैसे सागर संग नीर अद्भुत गीत गाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
जिनमें सपनों की सीपियाँ, कुछ उजले मोती भी सजाये
नंगे पैरों पर खारेपन की चादरें,
कि जैसे सागर संग नीर अद्भुत गीत गाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
मेरा ठहराव, मेरा मन और कुछ सूना सा सूनापन
तुम्हारी आहट भर से महकती ही चली जाये
कि जैसे अनंत रिक्तता क्षणिक भ्रान्ति की भांति
सम्पूर्ण अस्तित्व में समाती जाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
तुम्हारी आहट भर से महकती ही चली जाये
कि जैसे अनंत रिक्तता क्षणिक भ्रान्ति की भांति
सम्पूर्ण अस्तित्व में समाती जाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
सहज सरल साहिल, लहरों की बांट है जोहता
स्वयं रहे मौन किसी से कुछ भी न कहता
लहरों का आकार साहिल सा रूप धरता जाये
प्रत्येक दिशाएं नित नवीन उत्सव मनाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
स्वयं रहे मौन किसी से कुछ भी न कहता
लहरों का आकार साहिल सा रूप धरता जाये
प्रत्येक दिशाएं नित नवीन उत्सव मनाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
क्या छिपा भविष्य में, नियति कैसे समझ पाये
बंद मुट्ठी की रेत बस यूँ ही फिसलती चली जाये
यदि कोई इसे थाम ले तो और बात हो
वरना होनी को आखिर कौन टाल पाये
काश हम, यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाएं
बंद मुट्ठी की रेत बस यूँ ही फिसलती चली जाये
यदि कोई इसे थाम ले तो और बात हो
वरना होनी को आखिर कौन टाल पाये
काश हम, यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाएं
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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