जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
बुज़ुर्गियत झलकती है कभी
तो मौत का दीदार भी हुआ करता है
रह रहकर कह कहकर
लोग लगते हैं जाने क्या-क्या बताने
जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
तमाम खोयी हसरतें, मिल जाने को तरसें
कहीं धूप, कहीं छाँव तो कहीं आँखें है बरसें
कसक सी उठे सीने में, तो प्यार हुआ करता है
यहीं इसी जमीं पर रंजोग़म पाक हुआ करता है
पर इसे कोई तो समझे, इसे कोई तो जाने
टूटते बिखरते हैं, हर एक बुने सपने सुहाने
जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
कोई करतब दिखाता है, कोई खेल ही बन जाता है
कोई हँसता है, रोता है, कोई रोते हुए को हंसाता है
कभी तो महलों में भी अँधेरा हुआ करता है
हर गहरी रात के बाद सवेरा हुआ करता है
बंद आँखों से कोई इसे कैसे पहचाने
लो आज फिर तुम मुझे लगे समझाने
जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
आखिरी होगी वो दास्ताँ, जिसमें दर्द नहीं होगा
सहमे काँपते होंठो का खून सर्द नहीं होगा
इतनी भी जल्दी कहाँ वक़्त हुआ करता है
हंसना ही जीने का नाम हुआ करता है
चलो गाएं गीत नए, लिखें नए तराने
कोई माने तो माने, या फिर ना ही माने
जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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