क्या करूँ इस दिल का हर रोज़ मोहब्बत करता है
तन्हाई में रहता है और खुद से बातें करता है
यादों की ग़र बात कहूँ बस यूँ ही जुदा हो जाती हैं
बिन यादों के हर मुक़ाम अधूरा रहता है
मुक़ाम तन्हाइयों का नहीं ज़िन्दगी का हुआ करता है
इनसे मिलने को तो अँधेरा भी डरता है
तन्हाईयाँ जब भी मिलती हैं पत्थर सी हो जाती है
कहने को तो खुदा पत्थरों में जिया करता है
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© Snehil Srivastava
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