नींद। - नींद।
मैं भी था वहाँ पे...औरों की तरह ही था...उन्हीं जैसा...
लेकिन हमेशा कहता था..."और लोगों की तरह थोड़ी ना हूँ मैं..."
मैंने ना सोच रखा था..कुछ बड़ा करने को पैदा हुआ हूँ...जरूर।
अपने को मैंने किस्सी से कम तो कभी नहीं...हाँ थोड़ा ज्यादा जरूर समझा है...बड़ा समझा है...
मुझे हमेशा लगता था...सारी दुनिया कितनी मतलबी है...
और मैं...खैर...
मै खड़ा सोचता रहा...अपनी गाड़ी से उतरा तक नहीं।।।
उस भिखारी को सड़क से खुरच कर निकालना पड़ा...ऐसा छपा था अख़बार में।
बड़ा छोटा महसूस हुआ!! बस गाड़ी से उतर कर उसे जगा कर कह देता कल रात..."साले! साइड होके सो...कोई ठोक के चला जायेगा..."
- Lokesh 'Human@core'
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© Snehil Srivastava
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