Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, August 26, 2014

कुछ सवाल What If



तुम्हारी हर सजा मुझे मंज़ूर दिल से

मोहब्बत की सजा मैं दूँ तुम्हें फिर क्या हो

माना मेरी भी कुछ ख़ता रही होगी शायद

नफ़रत मैं भी करूँ बेवजह फिर क्या हो


अब तो शाम हुई, उदासी का आलम भी है

मैं तुम्हें सोचकर मुस्कुराऊँ फिर क्या हो

चाहकर भी तुम्हें भूल ना पाऊँ मैं

तुम मेरी नज़्म में ढलती जाओ फिर क्या हो



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© Snehil Srivastava

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