सुकून ना था, मोहब्बत ना थी
जब तक मेरे दिल में तेरी आहट ना थी
वो दौर और था जब मैं अकेला हुआ करता था
और मुझमें तेरा हो जाने की चाहत ना थी
मैंने मंज़र देखे थे अपनी ही मौत के कई दफ़ा
मुझमें ख्वाबों से बाहर आने की हिम्मत ना थी
टूटते सितारों को देखा था खुले आसमानों में
उन्हें फिर से सितारे बनते हुए देखने की ज़िद ना थी
हसरत बहुत थी, तुम्हारी बस एक खनक सुनने की
तेरी आँखों में बसे ग़मों जैसी कसक ना थी
उस दौर में मुझे लोगबाग मिले, मिलते ही रहे
किसी एक में भी तेरे साये सी जन्नत ना थी
तिनकों का बना शहर मेरा बिखरता ही रहा
पहलू में समेट लेने की मुझमें ताकत ना थी
तुम, तुम्हारी मोहब्बत, वो सुकून खो गया कहीं अब
मेरे दरवाज़े पर बरसों से कोई दस्तक ना थी
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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