सहमा हुआ मुसाफ़िर, रुकने की फ़िराक में
जलता ही चला जाये, जिंदगी की आग में
उफनती हुई साँसें, काँपते से उसके होंठ
दो शब्द कह ना पाये, अपनी अंतिम रात में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
चक्रव्यूह था वो रण का कुछ ना आया हाथ में
सर्वस्व खो दिया था, उसने इसी संताप में
भर गयी थी आँखें, नरम अश्रुओं के कारण
क्या था उसने लाया जो ले जाता साथ में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
वो भीगता ही रहता, हर बरसात में
वो टूटता ही रहता अपनी हर बात में
उसका हृदय था खाली कुचला हुआ घरौंदा
वो यहाँ वहाँ भटकता, जाने किसकी तलाश में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
नहीं हारता था फिर भी इसी विश्वास में
विजय उसे मिलेगी चाहे अज्ञात में
उसका सत्य था उस सा नीर से भी निर्मल
वो बंधा हुआ था जिसके मोहपाश में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
जलता ही चला जाये, जिंदगी की आग में
उफनती हुई साँसें, काँपते से उसके होंठ
दो शब्द कह ना पाये, अपनी अंतिम रात में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
चक्रव्यूह था वो रण का कुछ ना आया हाथ में
सर्वस्व खो दिया था, उसने इसी संताप में
भर गयी थी आँखें, नरम अश्रुओं के कारण
क्या था उसने लाया जो ले जाता साथ में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
वो भीगता ही रहता, हर बरसात में
वो टूटता ही रहता अपनी हर बात में
उसका हृदय था खाली कुचला हुआ घरौंदा
वो यहाँ वहाँ भटकता, जाने किसकी तलाश में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
नहीं हारता था फिर भी इसी विश्वास में
विजय उसे मिलेगी चाहे अज्ञात में
उसका सत्य था उस सा नीर से भी निर्मल
वो बंधा हुआ था जिसके मोहपाश में
सहमा हुआ मुसाफ़िर...
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.newartcolorz.com
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© Snehil Srivastava
Nice Poetry Swapnil... your poetry is growing with time and becoming more mature.. Kudos..
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