Dedicated to everyone
who left their homes to build their own - Irony!
क़द्र नहीं अच्छाई की इस 'सूने' शहर में
जुबां पे ना सही अच्छाई तो होती इस दिल-ए-ज़िक्र में
शहर से शहर, गाँव से गाँव घूम आया वो अदना मुसाफिर
ना भीख मिली, दिल भी गया- कासा भी खोया जाने किस फ़िक्र में
जुबां पे ना सही अच्छाई तो होती इस दिल-ए-ज़िक्र में
शहर से शहर, गाँव से गाँव घूम आया वो अदना मुसाफिर
ना भीख मिली, दिल भी गया- कासा भी खोया जाने किस फ़िक्र में
लाज़मी है कि वो लोग कुछ और रहे होंगे
मांगने बांटने के तरीके भी कुछ बदले जरूर रहे होंगे
शहरों के सूनेपन मुसाफिरों की भीड़ से यूँ तो नहीं बढ़ जाया करते
कुछ टूटे सपने रहे होंगे कुछ छूटे अपने रहे होंगे
मांगने बांटने के तरीके भी कुछ बदले जरूर रहे होंगे
शहरों के सूनेपन मुसाफिरों की भीड़ से यूँ तो नहीं बढ़ जाया करते
कुछ टूटे सपने रहे होंगे कुछ छूटे अपने रहे होंगे
(waiting for some more
lines to write upon)
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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