मरे हुए खून का रंग काला होता है
ये कोई नयी बात तो नहीं
जब भी हुई है निरीह की हत्या
बदलता कुछ भी तो नहीं
खून के कतरे का यूँ टपकना
जैसे कही कुछ बाँतें अनकही
जब ये जम कर काला पड़ जाता है
इतना भी तो सख्त लगता नहीं
आज भी कल भी और सदा से ही
ये दिल क्यूँ दहकता नहीं
क्या जब अपना खून बहेगा
तब होगी बातें कुछ सही
रात से काला खून का ये रंग
सुबह की मेहक से मिलता क्यूँ नहीं
मरे हुए खून का रंग काला होता है
ये कोई नयी बात तो नहीं
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© Snehil Srivastava
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