कहाँ गया वो भाव
तुमसे मिलते रहने का चाव
जब अतिरेक में कह जाता था तुमसे अपना ह्रदय
कहना अब भी चाहता हूँ पर
किससे, कहूं कैसे ?
धूमिल हुई हैं कुछ
मुस्कुराहटें
सूख चुके हैं आंसू सब
पर एहसास तो अब भी है।
यदि मैं चीख पडूं तो न बदलेगा कुछ
सत्य जो ठहरा
यूँ कुछ ढूंढ़ते रहना
थका सा देता है मुझे
ये एक ही तो जीवन है
काश एक बार फिर शुरू हो जाता
काश एक बार फिर मुस्कुराता
अतिरेक में बह जाताथोड़े ही सही, मीठे भाव जगाता
दुनिया को लुभाता
और फिर गहरी नींद में सो जाता
सपनों को पास पाकर
एक सिहरन सी उठती है
जैसे सपना नहीं
हो सत्य का अटूट साथ
रह जाऊँ यहीं
सदा के लिए
और ये सजल निर्ममता
वहीँ रहे
उसी भारी सुकून में
नश्वर अमरत्व को पाकर
मुझसे दूर
सपनों की मेहक से परे
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© Snehil Srivastava
बहुत सुन्दर प्रेरक रचना ..
ReplyDeleteAwesome!!
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