तेरे हर फ़क्र पर मुझको शर्मिंदगी महसूस होती है
तू क़ौम का क़ामिल है मैं वतन का बिस्मिल हूँ
तुम्हारी हर खुदाई पर खुदा नाराज़ होता है
मेरे बस सांस लेने से वो सजदे में रहता है
तुम्हारी मौत पर उसको हंसी भी नहीं आती
मेरे जर्रे-ए-वतन पर शिकन आये वो फूटकर रोता है
इतना ही समझ लेते ये दुनिया और होनी है
जो वतन पर जीता है उसका खुदा होता है
चलो एक बार देखें हम तुम्हें कितना गुमां है खून बहाने पर
हमारे यहां तो पेड़ो का रंग भी हरा होता है
जिनसे हम सांस लेते हैं जिन्हें हम काट देते हैं
खुदा भी आज देखे इंसान कितना बुरा होता है
छोड़ो भी ये तकरारें चलो कुछ शेर कहते हैं
क्या पता खुदा वहाँ मसनद लगाये बैठा है
तेरे हर फ़क्र पर मुझको शर्मिंदगी महसूस होती है
तू क़ौम का क़ामिल है मैं वतन का बिस्मिल हूँ
तू क़ौम का क़ामिल है मैं वतन का बिस्मिल हूँ
तुम्हारी हर खुदाई पर खुदा नाराज़ होता है
मेरे बस सांस लेने से वो सजदे में रहता है
तुम्हारी मौत पर उसको हंसी भी नहीं आती
मेरे जर्रे-ए-वतन पर शिकन आये वो फूटकर रोता है
इतना ही समझ लेते ये दुनिया और होनी है
जो वतन पर जीता है उसका खुदा होता है
चलो एक बार देखें हम तुम्हें कितना गुमां है खून बहाने पर
हमारे यहां तो पेड़ो का रंग भी हरा होता है
जिनसे हम सांस लेते हैं जिन्हें हम काट देते हैं
खुदा भी आज देखे इंसान कितना बुरा होता है
छोड़ो भी ये तकरारें चलो कुछ शेर कहते हैं
क्या पता खुदा वहाँ मसनद लगाये बैठा है
तेरे हर फ़क्र पर मुझको शर्मिंदगी महसूस होती है
तू क़ौम का क़ामिल है मैं वतन का बिस्मिल हूँ
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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