Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, October 24, 2015

एक सच्चा झूठ
One Truthful Lie

अब फटी एड़ियां मुझे खूबसूरत नहीं लगतीं
पहले माँ के पैरों को छूना मेरी आँखे नम कर देता था
अब बारिश से भीगती मिट्टी कीचड़ बन मेरे मन को और गन्दा कर रही है
जो मिट्टी कभी बारिश की एक बूँद से सोंधी हो जाया करती थी
अब किसी भिखारी को देखकर मुझे तरस तक नहीं आता
जिसे पहले कभी देखते ही करुणा जाग जाती थी
जानवर तो मुझे जानवर लगने लगे हैं
जिनको कभी मोती, तो कभी शेरू बुलाया करते थे
अब गुड़ की मिठास भी बीमारियों का घर लगती है
जिसकी कभी गुड़-धानी हुआ करती थी
किसी के आगे झुकना अब चाटुकारिता बन गया है
पहले तो चरण छूने पर आशीर्वाद मिला करते थे
खेतों से नानी ताजी मीठी बालियां भेजती थी
नानी जाने कहाँ हैं बालियां भी कहीं खो गयी सी लगती हैं
चूल्हे की रोटी हांड़ी की दाल हुआ करती थी
उसी चूल्हे पर जली सूखी लकड़ी कोयला बन आज भी शान्त पड़ी है

बस एक प्रश्न है-
क्या तब मैं संवेदनशील था
या अब मैं संवेदनहीन हूँ?

-Snehil Srivastava
Picture credit: www.thefineartsmarket.com
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© Snehil Srivastava

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