अब फटी एड़ियां मुझे खूबसूरत नहीं लगतीं
पहले माँ के पैरों को छूना मेरी आँखे नम कर देता था
अब बारिश से भीगती मिट्टी कीचड़ बन मेरे मन को और गन्दा कर रही है
जो मिट्टी कभी बारिश की एक बूँद से सोंधी हो जाया करती थी
अब किसी भिखारी को देखकर मुझे तरस तक नहीं आता
जिसे पहले कभी देखते ही करुणा जाग जाती थी
जानवर तो मुझे जानवर लगने लगे हैं
जिनको कभी मोती, तो कभी शेरू बुलाया करते थे
अब गुड़ की मिठास भी बीमारियों का घर लगती है
जिसकी कभी गुड़-धानी हुआ करती थी
किसी के आगे झुकना अब चाटुकारिता बन गया है
पहले तो चरण छूने पर आशीर्वाद मिला करते थे
खेतों से नानी ताजी मीठी बालियां भेजती थी
नानी जाने कहाँ हैं बालियां भी कहीं खो गयी सी लगती हैं
चूल्हे की रोटी हांड़ी की दाल हुआ करती थी
उसी चूल्हे पर जली सूखी लकड़ी कोयला बन आज भी शान्त पड़ी है
बस एक प्रश्न है-
क्या तब मैं संवेदनशील था
या अब मैं संवेदनहीन हूँ?
पहले माँ के पैरों को छूना मेरी आँखे नम कर देता था
अब बारिश से भीगती मिट्टी कीचड़ बन मेरे मन को और गन्दा कर रही है
जो मिट्टी कभी बारिश की एक बूँद से सोंधी हो जाया करती थी
अब किसी भिखारी को देखकर मुझे तरस तक नहीं आता
जिसे पहले कभी देखते ही करुणा जाग जाती थी
जानवर तो मुझे जानवर लगने लगे हैं
जिनको कभी मोती, तो कभी शेरू बुलाया करते थे
अब गुड़ की मिठास भी बीमारियों का घर लगती है
जिसकी कभी गुड़-धानी हुआ करती थी
किसी के आगे झुकना अब चाटुकारिता बन गया है
पहले तो चरण छूने पर आशीर्वाद मिला करते थे
खेतों से नानी ताजी मीठी बालियां भेजती थी
नानी जाने कहाँ हैं बालियां भी कहीं खो गयी सी लगती हैं
चूल्हे की रोटी हांड़ी की दाल हुआ करती थी
उसी चूल्हे पर जली सूखी लकड़ी कोयला बन आज भी शान्त पड़ी है
बस एक प्रश्न है-
क्या तब मैं संवेदनशील था
या अब मैं संवेदनहीन हूँ?
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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