Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, October 24, 2015

जरुरी तो नहीं
Not Important...

मैंने बहुत से सवालियों को चुपचाप सा देखा है
मेरी हर बात के कुछ मायने हों जरुरी तो नहीं
मैंने उनको यूँ ही बेवजह हँसते हुए भी देखा है
मैं हर ग़म में ग़मगीन रहूँ जरुरी तो नहीं
मेरे दुश्मनों की फेहरिस्त में एक नाम मेरा खुद का भी है
मुझे फ़िक्र हो हर एक की जरुरी तो नहीं
यहाँ हर रोज कोई न कोई चला जाता है दूर कहीं
मुझे भी इस जिंदगी से रंज हो जरुरी तो नहीं
यहाँ बिखरे हैं ख्वाबों के टुकड़े हर तरफ
मैं अब नींद से भी डरने लगूँ जरुरी तो नहीं
मैंने भी दुआएं मांगी हैं कुछ वजहों के जानिब
मेरा हाथ उठे तो क़त्ल ही हो जरुरी तो नहीं
मुझे भी दिख जाता है सही गलत का बारीक फ़रक
मैं हर गलत को सही कहूँ जरुरी तो नही
मेरे सीने में भी है आगों का बहता समंदर
मैं पानी के अदने समंदर में डूबा ही रहूँ जरुरी तो नहीं


-Snehil Srivastava
(Note- No part of this post may be published reproduced or stored in a retrieval system in any forms or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava

No comments:

Post a Comment