Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, November 8, 2014

आज भी... The Betrayal


तू सयाना तो बहुत है पर इसमें मेरी क्या ख़ता
तेरे लोग तो मुझे आज भी नादान ही कहते हैं

मेरी मोहब्बत को किसी ने आवारगी कहा था कभी
लोग तो मुझे आज भी मोहब्बत में परेशां ही कहते है

तुझे ख़बर भी क्या होगी किस कदर जीता हूँ मैं तेरे बिन
लोग तो मुझे आज भी बिकी दूकान ही कहते हैं

इन लफ़्ज़ों के ज़रिये मेरी तहरीर मोहब्बत बयां करती है
लोग तो तुझे आज भी 'बेवफ़ा' नाम दिया करते हैं


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© Snehil Srivastava

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