काश, सफ़र होता मेरा हमसफ़र
मेरे हर कदम पर साथ चलने को
पर्वतों की ऊंचाइयों से भी ऊंचा
सागर की गहराईयों से भी गहरा
काश, ये मन होता सबसे बेखबर
मेरे हर पल का एहसास करने को
मेरे ही साथ जीने को
मेरे ही साथ मरने को
आसमां से भी नीला
पानी सा सजीला
पेड़ों की छांव तले
घनी दोपहरी बीतती
रात को आँखों में
जुगनुओं की रौशनी चमकती
जब हवा बहती संगीत महकता
सरसराकर कानों में नया गीत कहता
पत्थरों की बातें दिल को छू जाती
मुरझायीं कलियाँ फिर से मुस्कुराती
पंछी सदा ही अपनी ठौर पाते
अपने घरोंदों को तिनकों से सजाते
मैं यूँ ही चलता रहता अनंत से मिलन को
भूल जाता सारी रिदय की तपन को
पर काश, सफ़र होता मेरा हमसफ़र
Picture credit: www.skift.com, www.stuffpoint.com
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© Snehil Srivastava
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