सागर तट पर बैठी हुई
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
जल तरंगों की अठखेलियां
रेत का उसके पैरों को सहलाना
और कुछ सुनहरी यादों का सहाय्य
कि जैसे उस चित्रकार और उसकी कूची
का रंगीन खेल खेला जा रहा हो
यथार्थ की बहती नम हवा
मद्धम मद्धम उसके उदास पहनावे को
अपनी गरिमयी कान्ति से
सुखद बनाने को तत्पर हैं
साथ ही कुछ सुफैद और कुछ काली सीपियाँ
अपने खुरदुरे एहसास के श्वास से
जीवित हो उठे हैं
चंद्र किरणों से बना मोती भी
इस प्राकृतिक सौम्यता का साक्षी बन गया है
उदासी जाने कहाँ खो गयी है
किन्हीं रंगों संग
सागर तट पर बैठी हुई
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
Picture credit: www.mixcloud.com
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
जल तरंगों की अठखेलियां
रेत का उसके पैरों को सहलाना
और कुछ सुनहरी यादों का सहाय्य
कि जैसे उस चित्रकार और उसकी कूची
का रंगीन खेल खेला जा रहा हो
यथार्थ की बहती नम हवा
मद्धम मद्धम उसके उदास पहनावे को
अपनी गरिमयी कान्ति से
सुखद बनाने को तत्पर हैं
साथ ही कुछ सुफैद और कुछ काली सीपियाँ
अपने खुरदुरे एहसास के श्वास से
जीवित हो उठे हैं
चंद्र किरणों से बना मोती भी
इस प्राकृतिक सौम्यता का साक्षी बन गया है
उदासी जाने कहाँ खो गयी है
किन्हीं रंगों संग
सागर तट पर बैठी हुई
जल और आकाश के मिलन को निहारती
उदासी मुस्कुरा उठी
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© Snehil Srivastava
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