इस सुबह-
तुम्हारी कोमल सुर्ख हथेलियाँ
मुझे मेरे बचपन की
यादों में ले गयीं
तुम्हारी कोमल सुर्ख हथेलियाँ
मुझे मेरे बचपन की
यादों में ले गयीं
इनमे सोंधी सी मेहक है
जब हम गीली मीट्टी को
छुआ करते थे, और तुम्हारी हथेलियाँ
मटियाली हो जाया करती थीं
जब हम गीली मीट्टी को
छुआ करते थे, और तुम्हारी हथेलियाँ
मटियाली हो जाया करती थीं
इन रेखाओं के बीच
छोटे छोटे से घर
बहती ठहरी नदियां
और कुछ रास्ते हुआ करते थे
छोटे छोटे से घर
बहती ठहरी नदियां
और कुछ रास्ते हुआ करते थे
मुट्ठी बंद कर देने से
मेहक नहीं मिटटी
और ना ही रास्ते कहीँ खोते हैं
बस हम घरों तक पहुँच नहीं सकते
मेहक नहीं मिटटी
और ना ही रास्ते कहीँ खोते हैं
बस हम घरों तक पहुँच नहीं सकते
तुमने एक बार शरमाकर
अपना चेहरा
इन्हीं हथेलियों में
छिपा लिया था
अपना चेहरा
इन्हीं हथेलियों में
छिपा लिया था
वो मखमली हंसी
आज भी मेरे कानों में
गूँज उठती है
जैसे सब कुछ अभी भी वैसा ही हो
आज भी मेरे कानों में
गूँज उठती है
जैसे सब कुछ अभी भी वैसा ही हो
तुम्हारी हथेलियाँ भी तो
नहीं बदलीं
वही छोटे छोटे घर
कुछ लंबे रास्ते जरूर मिलें हैं मुझे
नहीं बदलीं
वही छोटे छोटे घर
कुछ लंबे रास्ते जरूर मिलें हैं मुझे
काश वो मीट्टी का रंग
हल्का ना पड़ता
और इनकी मेहक
तुमसी ना बदलती
हल्का ना पड़ता
और इनकी मेहक
तुमसी ना बदलती
-स्नेहिल श्रीवास्तव
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© Snehil Srivastava
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