Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, May 2, 2015

कोमल हथेलियाँ
Innocent You, Every Morning

इस सुबह-
तुम्हारी कोमल सुर्ख हथेलियाँ
मुझे मेरे बचपन की
यादों में ले गयीं
इनमे सोंधी सी मेहक है
जब हम गीली मीट्टी को
छुआ करते थे, और तुम्हारी हथेलियाँ
मटियाली हो जाया करती थीं
इन रेखाओं के बीच
छोटे छोटे से घर
बहती ठहरी नदियां
और कुछ रास्ते हुआ करते थे
मुट्ठी बंद कर देने से
मेहक नहीं मिटटी
और ना ही रास्ते कहीँ खोते हैं
बस हम घरों तक पहुँच नहीं सकते
तुमने एक बार शरमाकर
अपना चेहरा
इन्हीं हथेलियों में
छिपा लिया था
वो मखमली हंसी
आज भी मेरे कानों में
गूँज उठती है
जैसे सब कुछ अभी भी वैसा ही हो
तुम्हारी हथेलियाँ भी तो
नहीं बदलीं
वही छोटे छोटे घर
कुछ लंबे रास्ते जरूर मिलें हैं मुझे
काश वो मीट्टी का रंग
हल्का ना पड़ता
और इनकी मेहक
तुमसी ना बदलती

-स्नेहिल श्रीवास्तव

Picture credit: www.picsart.com
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© Snehil Srivastava

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