प्रतिबिम्ब में यूँ
तो
कुछ ख़ास
ख़ासियत नहीं होती
रूप जिसका
होता है
उसे पूरा
नहीं कर पाता
प्रतिरूप जिसपर बनता
है
उसमें समां
नहीं पाता
पर हर
प्रतिबिम्ब अलग है
उसका रूप
उसकी नियति
पानी में
पानी का प्रतिबिम्ब
आकाश का
कहीं खोया प्रतिबिम्ब
हवाओं का
भी होता है क्या
या फिर
रौशनी का चमकता प्रतिबिम्ब
जीवन प्रतिबिम्ब,
मृत्यु प्रतिबिम्ब
जीत सा अथवा हार का प्रतिबिम्ब
दिखता नहीं
कही दूर तलक भी
मुझसे मेरा
रूठा प्रतिबिम्ब
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.bloody-but-beautiful.deviantart.com
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© Snehil Srivastava
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