जीवन-मृत्यु
छिन गया है जीवन, मृत्यु के हाथों से
भयभीत हुआ अब घनघोर अँधेरी रातों से
थर थर कांप उठता था जो अनायास कभी
निर्भीक हुआ फिरता है हर झंझावातों में
सहज नियति थी घिर आयी मृत्यु-दर्शन को
छला अकेला बैठा वो पूर्ण समर्पण को
गति अंतिम थी, जीवन लौ भी मद्धिम थी
तत्पर था करने न्यौछावर अपने कण कण को
ईश ने उसको देख लिया, संदेशा अपना भेज दिया
अब न होगी तेरी मृत्यु, जा तुझको मैंने अभयदान दिया
बोला गिरकर प्रभु-चरणों पर, स्वामी मुझको स्वीकार करो
अभयदान यदि देना है तो लौटा लो अपना सारा किया
युक्ति संगत है बात जानकार प्रभु ने सहमति दे दी थी
सारे मृत मनुष्यों में जीवन संजीवनी भर दी थी
'जीवन मृत्यु एक कल्पना है जो आज नहीं कल होनी है'
सत्य दर्शन की बात निराली हे केशव तुमसे ही सीखी थी
छिन गया है जीवन, मृत्यु के हाथों से
भयभीत हुआ अब घनघोर अँधेरी रातों से
थर थर कांप उठता था जो अनायास कभी
निर्भीक हुआ फिरता है हर झंझावातों में
सहज नियति थी घिर आयी मृत्यु-दर्शन को
छला अकेला बैठा वो पूर्ण समर्पण को
गति अंतिम थी, जीवन लौ भी मद्धिम थी
तत्पर था करने न्यौछावर अपने कण कण को
ईश ने उसको देख लिया, संदेशा अपना भेज दिया
अब न होगी तेरी मृत्यु, जा तुझको मैंने अभयदान दिया
बोला गिरकर प्रभु-चरणों पर, स्वामी मुझको स्वीकार करो
अभयदान यदि देना है तो लौटा लो अपना सारा किया
युक्ति संगत है बात जानकार प्रभु ने सहमति दे दी थी
सारे मृत मनुष्यों में जीवन संजीवनी भर दी थी
'जीवन मृत्यु एक कल्पना है जो आज नहीं कल होनी है'
सत्य दर्शन की बात निराली हे केशव तुमसे ही सीखी थी
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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