Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, May 9, 2015

धुंधलापन
The dullness

अनगिनत दीवारों की परतों को
करीब से देखने की ख्वाइश सी जगी है दिल में
आज, कल या शायद परसों-
इनकी परतों से आंसुओं को बहते देखा था
परत दर परत
आंसू धुंधले हो चले थे
उन्हीं दीवारों के पीछे
कहकहों की आवाज़ें गूँज रही थीं
गूँज में कहीं किसी का सिसकना
मेरी ख्वाइश और दीवार की ज़िन्दगी से
अनचाहा मेल खा रही थी
कल तक पहुँचने की ज़िद
और कल से कहीं दूर चले जाने की कोशिश
मद्धम मद्धम सांसों की तरह
अनवरत हैं
एक एक दीवार को यदि
हाथों से सहलाकर देखूं
तो क्या परतें मुझे मेरे आंसुओं तक
या फिर एक हंसी से मिलने देंगी
या फिर ये ख्वाइश
इन्हीं परतों के साथ धुंधली होती रहेगी
एक दिन ये धुंधलापन मिटकर
अनंत व्योम में कहीं खो जायेगा


-Snehil Srivastava

Picture credit: www.themins.info
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© Snehil Srivastava


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