अनगिनत दीवारों की परतों को
करीब से देखने की ख्वाइश सी जगी है दिल में
आज, कल या शायद परसों-
इनकी परतों से आंसुओं को बहते देखा था
परत दर परत
आंसू धुंधले हो चले थे
उन्हीं दीवारों के पीछे
कहकहों की आवाज़ें गूँज रही थीं
गूँज में कहीं किसी का सिसकना
मेरी ख्वाइश और दीवार की ज़िन्दगी से
अनचाहा मेल खा रही थी
कल तक पहुँचने की ज़िद
और कल से कहीं दूर चले जाने की कोशिश
मद्धम मद्धम सांसों की तरह
अनवरत हैं
एक एक दीवार को यदि
हाथों से सहलाकर देखूं
तो क्या परतें मुझे मेरे आंसुओं तक
या फिर एक हंसी से मिलने देंगी
या फिर ये ख्वाइश
इन्हीं परतों के साथ धुंधली होती रहेगी
एक दिन ये धुंधलापन मिटकर
अनंत व्योम में कहीं खो जायेगा
करीब से देखने की ख्वाइश सी जगी है दिल में
आज, कल या शायद परसों-
इनकी परतों से आंसुओं को बहते देखा था
परत दर परत
आंसू धुंधले हो चले थे
उन्हीं दीवारों के पीछे
कहकहों की आवाज़ें गूँज रही थीं
गूँज में कहीं किसी का सिसकना
मेरी ख्वाइश और दीवार की ज़िन्दगी से
अनचाहा मेल खा रही थी
कल तक पहुँचने की ज़िद
और कल से कहीं दूर चले जाने की कोशिश
मद्धम मद्धम सांसों की तरह
अनवरत हैं
एक एक दीवार को यदि
हाथों से सहलाकर देखूं
तो क्या परतें मुझे मेरे आंसुओं तक
या फिर एक हंसी से मिलने देंगी
या फिर ये ख्वाइश
इन्हीं परतों के साथ धुंधली होती रहेगी
एक दिन ये धुंधलापन मिटकर
अनंत व्योम में कहीं खो जायेगा
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.themins.info
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© Snehil Srivastava
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