टुकड़े हैं ये आधे अधूरे
बस होते हैं सपनों में पूरे
बंद आँखों से सच है दिखता
चाहे कितने भी हों अँधेरे
सपनों की तो बात निराली
पतझड़ में भी है हरियाली
महक भरी उस शाम ने पूछा
क्या हो तुम केवल मेरे
उन बांतों से मुस्कान है मेरी
बीती रांतें अब हैं ठहरी
पूरा है ये जीवन तुमसे
खो गए सारे अँधेरे
जोड़ लिया इन टुकड़ों को अब
मुझसे रूठा बैठा है रब
सपनों में वो साथ है देता
रेत पर लिखे शब्द सुनहरे
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