जैसे मैं तुमसे मिला नहीं
जो भी है, पर ये सच तो नहीं।
लौटकर फिर वापिस आये तुम
गीली रेत पर लिखे नाम ढूंढते
पर वो तो कब का मिट चुका
छोटे बच्चों के पैरों तले
या कभी उनकी ख़ुशी का घरोंदा बनके
जोड़े थे जिन सपनों के तिनके
हाँ वो हर बार टूट जाता था
पर फिर से जुड़ने के लिए
दोष नहीं ये किसी का भी
सीमाओं की आड़ लिए
जब मैं तुमसे पहली बार मिला
चुप था, हौले से मुस्काया था
बचपन से जो सपना देखा था
उसको जीभर के गले लगाया था
बेफिक्र था अपनी मस्ती में
सोकर भी जगता रहता था
कोयल सी मीठी बोली सुन
रोकर भी हँसता रहता था
ये सब सच है, पर दूर हो तुम
मैं टूटा हूँ पर खुश भी हूँ
इन कोमल खुशियों की छांव में
हँसता हूँ, बस और क्या कहूँ
behetereen.......lajawaab........:)
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