बिखरी यादें मेरी तुमसे हैं
हर इक महकती शाम सी
कह दो कुछ, हम सुनते रहें
क्यूँ हो अब अनजान सी
हर पल में समाया है वो सिलसिला
जब जब तुमने मुझको छुआ
अब हम भी तुमसे क्या कहें
हो क्यूँ अब तुम बेजान सी
भीड़ भरी इस दुनिया में
हर इंसान अकेला बैठा है
यादों की गहरी घाटी में
मिलती नहीं मेरी सांसें कहीं
ठंडी हवा की ओट लिए
ये तूफ़ान समझ ना पाया मैं
साँसों बिन कोई कैसे जिए
कह दो तुम जो कहा नहीं...
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