आज जब मैंने माचिस के डिब्बे को खोला
तो उसमें छिपी वो आखिरी तीली सेहम उठी
नियति ने उसे
घरों को जलाना,
सिगरटें सुलगाना,
सांप्रदायिक दंगों में सबकुछ राख बनाना
और ना जाने कितने विषम कामों में बाँधा था
वो अपने उन दिनों को याद करती
जब कोई माँ दीप जलाती
या कभी उसके ताप से चूल्हे पर स्वादिष्ट खाना पकाती
उसने तो ढिबरी तक को रौशनी दी थी
उसी से प्रभु की आरती पूरी हुई थी
पर आज जब मैंने माचिस के डिब्बे को खोला
तो उसमें छिपी वो आखिरी तीली सेहम उठी
आज वो थोड़ी नम थी
जाने क्यों
मुझे उसकी नमी कुछ और ही महसूस हुई
जैसे कोई सारी रात सुबक सुबककर रोया हो
मैंने उसे हौले से उठाया, और सच मानों
मैं खुद को ही नहीं संभाल पाया
कोरों पर थमा आंसू ढुलककर
बहने लगा
और उस आखिरी तीली का नम हृदय
मुझमें होकर रोने लगा
नियति कुछ भी रही हो
उसका जन्म
किसी की मृत्यु का कारण नहीं बन सकता
आज कुछ भी हो जाये
इस तीली का हृदय आज नहीं जल सकता
तो उसमें छिपी वो आखिरी तीली सेहम उठी
नियति ने उसे
घरों को जलाना,
सिगरटें सुलगाना,
सांप्रदायिक दंगों में सबकुछ राख बनाना
और ना जाने कितने विषम कामों में बाँधा था
वो अपने उन दिनों को याद करती
जब कोई माँ दीप जलाती
या कभी उसके ताप से चूल्हे पर स्वादिष्ट खाना पकाती
उसने तो ढिबरी तक को रौशनी दी थी
उसी से प्रभु की आरती पूरी हुई थी
पर आज जब मैंने माचिस के डिब्बे को खोला
तो उसमें छिपी वो आखिरी तीली सेहम उठी
आज वो थोड़ी नम थी
जाने क्यों
मुझे उसकी नमी कुछ और ही महसूस हुई
जैसे कोई सारी रात सुबक सुबककर रोया हो
मैंने उसे हौले से उठाया, और सच मानों
मैं खुद को ही नहीं संभाल पाया
कोरों पर थमा आंसू ढुलककर
बहने लगा
और उस आखिरी तीली का नम हृदय
मुझमें होकर रोने लगा
नियति कुछ भी रही हो
उसका जन्म
किसी की मृत्यु का कारण नहीं बन सकता
आज कुछ भी हो जाये
इस तीली का हृदय आज नहीं जल सकता
मैंने माचिस के डिब्बे को बंद कर दिया
उसमें बंद वो आखिरी तीली चहक उठी
उसमें बंद वो आखिरी तीली चहक उठी
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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