खिलखिलाकर हँसना
याद दिलाता है मुझे
सुबह के ठंडे झोंकें की
सूरज की पहली किरणों की
सरसराती पत्तियों की
चिड़ियों के चेहचहाने की
दिल में सुकून समा जाने की
इस मंदिर की घंटियाँ
चारों ओर फैली फूलों की खुशबुएँ
याद दिलाती हैं मुझे
उस पवित्र एहसास की
जीने की आस की
आगे बढ़ने के अभ्यास की
दूर होते त्रास की
डूबते की सांस की
लगता तो नहीं
सच है या नहीं, पता नहीं
आज भी याद है मुझे
ये खिलखिलाहट
सिर्फ मैं समझ सकता था-
कितने भी शोर में
संसार के ओर छोर में
बादल घनघोर में
मनुहार है तुमसे
हंसी, अब तुम मेरे पास रहो
यहाँ हवा ठंडी है,
सूरज की किरणें हैं
कोमल पत्तियां,
चिड़ियों की बोली
हर वक़्त है हंसी ठिठोली
और आकाश में बिछी सतरंगी रंगोली
No comments:
Post a Comment