Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Friday, October 24, 2014

मुझे तुम पसंद हो I, See You

मुझे तुम पसंद हो
तुम्हे सोचने भर से सुकून मिलता है
लेटते ही नींद की गोद थपकी देती है
ये चारों ओर की खुशबू गर्म दोपहरी में
सूखे गले को तरावट देने वाली पानी सी है
जिसका ठण्डापन अकेले ही नाव पर बैठे
बस कहीं जाने वाले नाविक की तरह
नरम पानी से उसके प्रेम को दर्शाता है
वो इस प्रेम पाश में बंधकर भी मुस्कुराता है
अब तो बस कहीं खोने को दिल करता है
तुम्हारे या हो सके तो तुम्हारे एहसास के साथ
ये जो सफ़ेद पर्वत हैं, मुझे बुलाते हैं
इनकी आवाजें गूंजती हैं मेरे कानो में
और ये सर्द हवा मुझे खुद में समा लेना चाहती है
कि जैसे मेरी अरदास पूरी हो गयी हो
आंखें बंद किये इतना कुछ देखा है मैंने
अब इन्हें मूंदे रहने में ही सुकून है
लेकिन, मुझे तुम पसंद हो

Picture Credit: www.pageresource.com

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