ठंडक की दस्तक देती पहली 'बारिश' के नाम-
कुछ तो असर है
बस यूँ ही तेरा मिलना इत्तेफ़ाक ना था
तेरे दिल सा हो, ऐसा कोई पाक़ साफ ना था
पाकीज़गी इस कदर समायी थी तुझमें
मुझसे रुखसत होने में तेरा कोई जवाब ना था
जब हम थे मिले पहली बार उन लफ़्ज़ों के जानिब
तुमसे कहा था मैंने वो सब, तुम हुए थे मुझसे वाकिफ़
मेरी तनहाई से तुमने भी तो दोस्ती कर ली थी
जिसे निभाने का वादा किया था तुमने मेरी ख़ातिर
बस यूँ ही तेरा मिलना इत्तेफ़ाक ना था
तेरे दिल सा हो, ऐसा कोई पाक़ साफ ना था
पाकीज़गी इस कदर समायी थी तुझमें
मुझसे रुखसत होने में तेरा कोई जवाब ना था
जब हम थे मिले पहली बार उन लफ़्ज़ों के जानिब
तुमसे कहा था मैंने वो सब, तुम हुए थे मुझसे वाकिफ़
मेरी तनहाई से तुमने भी तो दोस्ती कर ली थी
जिसे निभाने का वादा किया था तुमने मेरी ख़ातिर
कुछ तो असर है
जो अब तुझे मेरी फ़िक्र तक नहीं
इश्क़ से हुई कुछ खता कि तुझपर मेरा असर तक नहीं
वो सब कहना एक वजह थी मेरा हमराज़ होने की
वरना मुझे जो डुबो दे ऐसी कोई लहर तक नहीं
अब सूनापन सा है मेरी लिखी हर नज़्म में
चुपचाप ही रहता हूँ दुनिया के हर जश्न में
तुझसे मिलने का इत्तेफ़ाक, ग़र हो इत्तेफ़ाक से
निभाऊंगा हर वो वादा तुझसे इसी जनम में
जो अब तुझे मेरी फ़िक्र तक नहीं
इश्क़ से हुई कुछ खता कि तुझपर मेरा असर तक नहीं
वो सब कहना एक वजह थी मेरा हमराज़ होने की
वरना मुझे जो डुबो दे ऐसी कोई लहर तक नहीं
अब सूनापन सा है मेरी लिखी हर नज़्म में
चुपचाप ही रहता हूँ दुनिया के हर जश्न में
तुझसे मिलने का इत्तेफ़ाक, ग़र हो इत्तेफ़ाक से
निभाऊंगा हर वो वादा तुझसे इसी जनम में
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© Snehil Srivastava
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