तुम्हारे ही इंतज़ार में, तुम्हारे लिए, तुम्हीं से सीखकर- प्रिये..'बारिश'.. .. ..
जब जलन होती है हृदय में
और तमस का साथ
ना कोई स्नेह है काम आता
ना स्वयं पर हो विश्वास
गंगा की छाती सूख जाती
परछाईयों के समरूप से
पुष्प पल्लव मुर्छित हुए हैं
रज में मिले, बिन धुप के
इस राख की आवाज़ सुनकर
मुझमें भरा विक्षोभ है
सब ने मिलकर इसको जलाया
कैसा ये सबका लोभ है
काश हो जाती एक बारिश
सारी अग्नि नीर होती
मुस्कुरा उठती धरा तब
ना फिर कभी अधीर होती
जब जलन होती है हृदय में
और तमस का साथ
ना कोई स्नेह है काम आता
ना स्वयं पर हो विश्वास
गंगा की छाती सूख जाती
परछाईयों के समरूप से
पुष्प पल्लव मुर्छित हुए हैं
रज में मिले, बिन धुप के
इस राख की आवाज़ सुनकर
मुझमें भरा विक्षोभ है
सब ने मिलकर इसको जलाया
कैसा ये सबका लोभ है
काश हो जाती एक बारिश
सारी अग्नि नीर होती
मुस्कुरा उठती धरा तब
ना फिर कभी अधीर होती
Picture Credit: www.bfamm.com
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© Snehil Srivastava
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