मैं ढूंढ रहा हूँ इसे
पिछले कई दिनों से
अँधेरी रातों में
पथरीले रास्तों पर
सूख चुके पेड़ों में
मुरझा चुकी कलियों में
और कभी आसमान से गिरती
पानी की बूंदों में
मृत पंछियों के चहकने के
आभास में
कुचले गये जानवरों की
कातर आवाज़ में
सीमा पर मारे गये
सैनिक की माँ की नम आँखों में
भूख से तड़पते बच्चे की
चलती रूकती सांसों में
अधूरे सपनों में
कुछ पराये कुछ अपनों में
मैं ढूंढ रहा हूँ इसे
पिछले कई दिनों से
पर शायद,
मेरी संवेदना मर चुकी है
Picture Credit: www.nationofchange.org
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