सारा जीवन थम जायेगा
क्या खोएगा क्या पायेगा
जब समय की मीठी धार थी बोली-
क्या तू मानुष कहलायेगा?
यूँ बैठे यूँ लेटे रहकर कुछ ना होगा, कुछ ना होगा
प्रतिकार किया तब तूने इसका
अपने झंझावातों में था तू डूबा
अब पछताने से क्या होगा विद्रोही
जब तुझसे सारा जग छूटा
यूँ बैठे यूँ लेटे रहकर कुछ ना होगा, कुछ ना होगा
जाने दे यदि जीवन है जाता
जो देता वो ही है पाता
इस जीवन की रीत निराली
नासमझा ही है भरमाता
यूँ बैठे यूँ लेटे रहकर कुछ ना होगा, कुछ ना होगा
कल की चिंता छोड़ दे राही
ये ठहरी बातें मायावी
यदि करने की तूने रख ठानी
तुझको क्या रोकेगा संसारी
यूँ बैठे यूँ लेटे रहकर कुछ ना होगा, कुछ ना होगा
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© Snehil Srivastava