Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Tuesday, May 3, 2016

मन के घरोंदे
Mann ke Gharonde


मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
जिनमें सपनों की सीपियाँ, कुछ उजले मोती भी सजाये
नंगे पैरों पर खारेपन की चादरें,
कि जैसे सागर संग नीर अद्भुत गीत गाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
मेरा ठहराव, मेरा मन और कुछ सूना सा सूनापन
तुम्हारी आहट भर से महकती ही चली जाये
कि जैसे अनंत रिक्तता क्षणिक भ्रान्ति की भांति
सम्पूर्ण अस्तित्व में समाती जाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
सहज सरल साहिल, लहरों की बांट है जोहता
स्वयं रहे मौन किसी से कुछ भी न कहता
लहरों का आकार साहिल सा रूप धरता जाये
प्रत्येक दिशाएं नित नवीन उत्सव मनाये
मैंने यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाये
क्या छिपा भविष्य में, नियति कैसे समझ पाये
बंद मुट्ठी की रेत बस यूँ ही फिसलती चली जाये
यदि कोई इसे थाम ले तो और बात हो
वरना होनी को आखिर कौन टाल पाये
काश हम, यादों की रेत से मन के कुछ घरोंदे बनाएं


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

दर्पण का जीवन
The imaginary world of a mirror


वो एक विहंगम दृश्य था
मनुष्य, दर्पण सदृश्य था
वो सत्य था, घनघोर बहता रक्त था
उसका प्रतिरूप मौन था
आखिर! वो आखिर कौन था?
उसमें मर्म था, जाने ये कैसा कर्म था?
उनकी दिशाएं एक थीं
किन्तु एक-दूसरे के विपरीत थीं।
दर्पण वो अपने दर्प में
ना जाने किस सन्दर्भ में
खुद से अलग अब हो गया
अपनी मनुष्यता खो गया
निर्जीव है, स्वयंभू होकर भी
जीवित भी होगा, लगता नहीं
दर्पण का जीवन, पूर्ण है
मनुष्यत्व जैसा अपूर्ण है।


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

जिंदगी के मायने
Meaningful Life


जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने
बुज़ुर्गियत झलकती है कभी
तो मौत का दीदार भी हुआ करता है
रह रहकर कह कहकर
लोग लगते हैं जाने क्या-क्या बताने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने

तमाम खोयी हसरतें, मिल जाने को तरसें
कहीं धूप, कहीं छाँव तो कहीं आँखें है बरसें
कसक सी उठे सीने में, तो प्यार हुआ करता है
यहीं इसी जमीं पर रंजोग़म पाक हुआ करता है
पर इसे कोई तो समझे, इसे कोई तो जाने
टूटते बिखरते हैं, हर एक बुने सपने सुहाने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने

कोई करतब दिखाता है, कोई खेल ही बन जाता है
कोई हँसता है, रोता है, कोई रोते हुए को हंसाता है
कभी तो महलों में भी अँधेरा हुआ करता है
हर गहरी रात के बाद सवेरा हुआ करता है
बंद आँखों से कोई इसे कैसे पहचाने
लो आज फिर तुम मुझे लगे समझाने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने

आखिरी होगी वो दास्ताँ, जिसमें दर्द नहीं होगा
सहमे काँपते होंठो का खून सर्द नहीं होगा
इतनी भी जल्दी कहाँ वक़्त हुआ करता है
हंसना ही जीने का नाम हुआ करता है
चलो गाएं गीत नए, लिखें नए तराने
कोई माने तो माने, या फिर ना ही माने

जिंदगी के मायने,
कुछ में है बचपना तो कुछ हैं सयाने


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

The You in me is child-like


The You in me is child-like.
I have patience. You are impatient who wants to do everything in a day.
I have anger that binds me to be happy. You are limitless happiness, I wish for you and pray.

I am bad in expressing the inside me. You have expressed every bit of that broken but beautiful and real self out of the darkest way.
I do mistakes and lose. You are the only one who always stay.

I find myself helpless at times. You show me strength, hope and that pretty untouched ray.
When I could not sleep. You become my dreams and shape to the beauty that useless clay.

Sometimes I feel absorbent to the pain and tears. Smile. You just say.
I don't understand myself. You have known me day, everyday.
The You in me is child-like.


-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava