Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Thursday, January 21, 2010

कहानी-"शिला"

'ज़िन्दगी का अंत एक शरुआत होनी चाहिए." जहाँ से कई और जिंदगियां यथार्थ बन सकें. लेकिन इनमें कहीं भूल से भी कोई झूठा शब्द ना हो वरना यथार्थता का कोई मोल नहीं रह जाता है.
हाँ तो ये बांतें शिला से जुडी हुई हैं, जो खुद का आधार कहीं खोज रही है. अब ये शिला कौन है कहाँ से आई है, ये तो मुझे पता नहीं लेकिन वो कहाँ है और कहाँ जाना चाहती है ये सब वो खुद ही मुझसे अंकित करवा रही है. उसकी हमेशा से चाह रही है की कोई उसे भी सुने, चाहे वो कुछ भी ना कह रही  हो. लेकिन सीधे तरीके से हर चाह पूरी होना इतना आसन तो नहीं ही होता है.
तो इस बार मैंने उसे बिना बताये, दुनिया में, उसकी छवि को जस का तस रखने की कोशिश की है.
अब मुझे शिला को उसके प्रथम दिन से ही आप सबसे मिलवाना चाहिए. ठंडक के महीने में, (साल तो उसने मुझे लिखने को मन कर रखा है) शिला का जन्म हुआ. बचपन ६ वर्ष तक सामान्य था, इसमें कुछ खास ऐसा नहीं है जो यहाँ लिखा जाये. लेकिन इतना तो ज़रूर है की उसके ये ६ वर्ष भी बस यूँ ही नहीं रहे होंगे. मैं ये बात इतने विश्वास से शायद इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि शिला को जहाँ तक मैंने जाना है, वो हर क्षण, कई क्षणों में जीने में विश्वास रखती है. अरे भाई वो भी तो एक इंसान ही है, अब अपना फायदा नहीं देखेगी क्या ?
शिला ने हमेशा चाहा की सब कुछ ठीक हो जाये लेकिन हर चाह का पूरा होना इस दुनिया में तो आसन नहीं दिखाई पड़ता है.  शिला अपनी चाह सच्ची लगन से पूरा करने में लगी रही है, तब से, जब से उसे इन सारी बातों का मतलब भी नहीं पता था. मैं हमेशा दुआ करता हूँ की शिला की ये सच्ची सोच यथार्थ की ज़मीन पर आ जाये क्यूंकि ऐसा होने से ना सिर्फ शिला बल्कि और भी शिलाएं इंसान बनकर अपनी पूरी ताकत से पत्थरों में जीवन का संचार कर सकेंगी.

"कोई और...?"

सपनों में कोई अपना नहीं होता इसलिए सपना केवल सपना नहीं होता है. सपनें हमारे अंतःकरण में छिपे कोरों का दर्पण होते हैं, मौन दर्पण...
     
     रिक्शे पर दिशा बैठी हुई है, फ़ोन पर माया से बांतें कर रही है. साथ में साहिल चल रहा है, साइकिल पर यानी मैं. बांतें मेरी हैं और बात दिशा कर रही है ?
दिशा- "और कैसी हो, कब आओगी ?"
माया- "ठीक हूँ, बढ़िया है सब, जल्दी ही !"
रहा नहीं गया साहिल से.
"मुझे दो फ़ोन, मैं बात करता हूँ"- साहिल बोला.
साहिल- "हाँ.. क्या हाल हैं ?
माया- "मैं ठीक हूँ, १७ को जाना है."
साहिल- (अरे)
लगा तो कुछ लेकिन...!!!
माया- "तुम कैसे हो?"
साहिल- "मै अच्छा हूँ."
माया- और...दोस्त...!!!
साहिल- "तुम ? मुझे लगा मैं माया से बात कर रहा हूँ, तमन्ना तुम?"
तमन्ना- "हाँ दोस्त, तमन्ना."
'जैसे कुछ मिल सा गया, या शायद कुछ खो गया'- साहिल सोचता रहा और फ़ोन कट गया...

"सब कुछ अपने मन का"


आओ चलें उस देश को
जहाँ है सब कुछ अपने मन का
आओ धरें उस वेश को
जो ढांक दे दोष सारा तन का
वो देश कहाँ है
वो वेश कहाँ है
देश हमारे मन में है
वेश छिपा जीवन में है
जब मन सजल हो जायेगा
जीवन निर्मल हो जायेगा
ये मेरा है विश्वास
मन तो है सिर्फ अंतर्मन के पास

Monday, January 18, 2010

मेरे भाई स्वप्निल के कुछ शब्द...


जब भी देखता हूँ ख़ुशी , ढूंढता हूँ उसमें गम
आशा, निराशा और प्रत्याशा हैं मेरे साथी हर दम

जब भी बरसात  आती है
हर दिल में खुशियाँ छाती हैं
तुम क्या जानो उस बरसात के बारे में
उसे बस मेरी ही तो पीड़ा बुलाती है


क्या जानूं कैसे ये ख्याल आया
ये तो दर्द की ही एक टीस थी जिसने मुझे फिर सताया
क्या करता इसलिए मैंने फिर से कलम को उठाया
और दर्द को इन कोरें पन्नों पर लिख लिख कर भुलाया


सुख दुःख तो हैं एक ही सिक्के के दो पहलु
कोई सहारा दे अगर मै भी सारे गम सह लूँ
मिलते तो हजारों हैं मुझे रोज़ यहाँ
पर कोई मिला नहीं जिससे अपनी बातें कह लूँ


गम के सागर में हिलोरें ले रही है मेरी नाव
हर बार किनारे पर आकर डूब रही है मेरी नाव
किस हाथ से पकडूँ मै इसकी पतवार
बस बिन मंजिल चली जा रही है मेरी नाव

Sunday, January 17, 2010

"तुम इश्वर हो"

होंठो पे हँसी तुम हो
तुम हो तो सुन लो
सुन ना सको तो भी रहो
हर पल, हर घड़ी, हर जगह
  लेकिन तुम कौन हो
  आँखें बंद हैं, और मौन हो
  शायद तुम इश्वर हो
  हर क्षण, हर मन, लेकिन कहाँ....?

"शब्द ख़ुशी के.."


अब ख़ुशी आई, बिना बादलों के
बादल तो आते जाते हैं
पर शायद ये ख़ुशी रुकेगी
ख़ुशी के साथ कुछ शब्द हैं
माँ के, पिता के और तुम्हारे
ये शब्द हे तो ख़ुशी के हैं...मेरे !!
नहीं रही ये कविता अधूरी
हो चुकी ये अब पूरी
क्यूंकि खुश हूँ
तुमसे, खुद से और....सबसे...!!!

"अनुभूति होती है..."


जिसकी अनुभूति होती है वो तुम हो
जिसकी याद आती है तुम वो हो
जब तुम नहीं होती तुम्हे छूता हूँ
तपन में शीतल छुअन तुम वो हो
   जब तुम नहीं होती तुम्हे देखता हूँ
   रात का उजाला तुम वो हो
   तुम मन हो सरल जीवन हो
   मौन करुणा का दर्पण तुम वो हो...

'For my dear Friend'...- "काजू"

तुम दोस्त हो, सच में
नहीं बताना है दुनिया को
ना ही खानी हैं कसमें
जब मिले थे हम पहली बार
न सोचा था कुछ
और ना ही किया था कोई विचार
ना की थी कोई बात
ना ही होना था बरसों का साथ


फिर से हम मिले
फिर से की दोस्ती
और कुछ दूर साथ चले


अब एक साथी के आने से
रास्ते कुछ अलग से हुए हैं
पर शायद ज़िन्दगी के कुछ पन्ने
अभी भी अनछुए हैं


मत छूना इन पन्नों को
बुनना सजीले सपनों को
जब हो एक दोस्त की ज़रूरत
मुझसे कहना, जो कुछ भी कहना हो


कितनी ताकत है, वक़्त में
तुम दोस्त हो सच में
ना ही बताना है दुनिया को
ना ही खानी हैं कसमें

"क्या भूलूं क्या याद करूँ"


क्या भूलूं क्या याद करूँ
बस खुद से ही फरियाद करूँ
नेत्रित्व की चाह में बढ़कर
आगे मैंने ये सोचा था
रखीं थीं अपनी आँखें बंद
यही आँखों का धोखा था
अभी चलना है आगे मुझको
अभी जीना है तप के मुझको
    बस भूलूंगा जो याद है
    यही मन का अवसाद है
    मीठीं बांतें भूल गयीं
    वो शीतल रातें भूल गयी
    तब शीतलता मेरे मन में थी
    मन क्या ! सारे जीवन में थी
    अभी तो जागा सोकर मै
    मुस्काया हूँ रो-रोकर मै...!!

Saturday, January 16, 2010

I Just Wanna Be...

I just wanna be
None more than me
Just a little of love
From my God above
Life worth living
Dreams worth walking
A bit of glory
A rememberable story
If not worth penning
Interesting for telling
I just wanna be
None more than me...
           By:  Lokesh...'Human at core'...

'Dilemma'

Wanna say you something,
All around happening.
A bit of confidence,
Loosing my heart and my sense.
     Tears and smile both,
     Without any hope.
     Deep breathing,
     Doing nothing.
     Passionate mind,
     making me blind.

"My DIDU"


It was not the perfect time,
When I first talked to this little angle.
The time was not really mine,
Because it was more than a hell.

Her words gave me power,
To fight against the world.
Those were like a soothing shower,
Because she has such a pure heart.

I am so proud to be her brother,
And I would be, until I die.
Because I can say the world,
That she is my little cutie-pie.

My DIDU is strongest, I know,
I wish, I could be like you.
From the tip to toe,
Yes, I will be coz' the feelings are really true.


Thanks for being my Didu.......God bless you..!!

Friday, January 15, 2010

"बात बचपन की"- You, My childhood...

तू एक दर्पण है
तुझे छुने का मन है
जब छुता हूँ इस दर्पण को
लगता है, खुद को है छु लिया
जितनी भी रह गयी थी ज़िंदगी अधूरी
उन पलों को बंद आँखों से, सपनों मे जिया
एक एहसास है, तू इस दर्पण से बाहर आ जाए
मैं तेरा हो जाउ और तू मेरा हो जाए
तुम बस आ जाओ पास तो
एहसास ये अनुभूति बन जाएगा
यदि तुम ना भी आओ
एहसास ये, मेरी हर सांस मे समा जाएगा

तू मेरा मन है
एक प्यारा सा बचपन है
जब छूता हू इस मन को
लगता है, जैसे बचपन को है छु लिया
मेरा ये बचपन लौटा दो
जिसे मैने अपना मन दे दिया
एक एहसास है, तू इस मन से ना जाए
तेरा हर गम बस मेरा सा हो जाए
तुम ना जाओ दूर तो
एहसास ये खुशी बन जाएगा
यदि तुम दूर हो भी जाओ
एहसास ये, आँखों की गीली सी हंसी मे समा जाएगा

तू एक जीवन है
तुझे जीने का मन है
जब जीता हू इस जीवन को
लगता है, तुझको है जी लिया
जितनी भी रह गयी थी खुशियाँ अधूरी
उन खुशियों को नम आँखों से है जिया
एक एहसास है, तू इस जीवन को कहीं दूर ले जाए
जिससे ये फिर कभी, किसी का ना होने पाए
तुम बस हो जाओ मेरे तो
एहसास ये ज़िंदगी बन जाएगा
यदि तुम ना भी हुए मेरे
एहसास ये, बंद आँखों का सपना रह जाएगा

तू मेरा वचन है
तुझे निभाने का मन है
जब निभाता हू इस वचन को
लगता है, क्यूँ खुद को ना बदल लिया
जितनी भी रह गयीं थी बातें अधूरी
उन बातों को अनछुआ ही रहने दिया
एक एहसास है, तू इस वचन को खुद ही तोड़ दे
और मुझको खुद के अस्तित्व से जोड़ दे
तुम बस निभा जाओ
एहसास ये हंसी बन जाएगा
तुम ना भी निभा पाओ
एहसास ये, झूठा-सा-सच रह जाएगा