Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Wednesday, February 26, 2014

कहीं सुना हैं मैंने (Kahin suna hai maine)


हूँ तल्ख़ क्यूँ इन दिनों मैं यूँ
जब सोचता हूँ तो हंस लेता हूँ
राह गुज़र हवाओं से पूछूं
कोरे जज़बातों से क्या कहता हूँ
हूँ शामिल मैं भी कतार में
दोज़ख के रस्ते ज़न्नत की फ़िराक़ में
हर शाम की भीनी खुशबूं से पूछूं
इस गमीं में क्यूँ रहता हूँ

जब भी मैंने देखा खुद का अक्स कहीं
मुंह फिरा लेने को दिल चाहे
दिल की सुनूं और हार ना जाऊँ
इन बातों से क्यूँ डरता हूँ
कहीं सुना हैं मैंने, खुदा भी है
और चारों तरफ फैला गुनाह भी
किस किस से कहूं बातें हज़ार
सोच कर ही चुप रहता हूँ

hu talkh kyu in dino mai yu
jab sochta hu to has leta hu
raah guzar hawaon se puchu
kore jazbaton se kya kehta hu
hu shamil mai bhi kataar me
dozakh ke rastey jannat ki firaq me
har sham ki bheeni khushbu se puchu
is gami me kyu rehta hu

jab bhi maine dekha khud ka aks kahi
muh fira lene ko dil chahe
dil ki sunu aur haar na jaun
in baton se kyu darta hu
kahi suna hai maine, khuda bhi hai
aur charon taraf faila gunaah bhi
kis kis se kahun batein hazar
soch kar hee chup rehta hu


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© Snehil Srivastava

Thursday, February 13, 2014

यदि मैं पत्थर होता Story of a STONE


यदि मैं पत्थर होता-
या तो तोड़ता, या खुद टूट जाता
पर अपना अंत मैं ना पाता
एक लकीर सी होने से
भगवन शंकर सा रूप पाता
किसी के महल में सज जाता
या किसी मंदिर में पूजा जाता
चन्दन को घिसकर शीतलता पाता
मूर्त रूप होकर ईश्वर कहलाता।

यदि मैं पत्थर होता।
मेरी कठोरता मेरा अहम् होती
जिसे हर पल चकनाचूर किया जाता
मानो तो कोयला तराशो तो हीरा
अपनी चमक पर मैं मुस्कुराता
राम लिख दो मुझपर तो तैर जाता
या फिर खुद से द्वन्द्व कर अग्नि बरसाता
छोटे बच्चों का खिलौना बन जाता
और फिर बार बार, हर बार तोड़ा जाता।

यदि मैं पत्थर होता।
मेरा हृदय भी तो पत्थर ही कहलाता
आघात लगने पर सब सेह जाता
आंसू भी ना बहते, दर्द भी ना होता
धीरे-धीरे मैं और पत्थर होता जाता
काशी में होता तो गंगा साथ होती
मरघट में होकर सिर्फ राख पाता
मिटटी से बनकर, मिटटी में मिलकर
ना जाने और कितने रास रचाता।

यदि मैं पत्थर होता।
कितनी अनूठी ये दुनिया मेरी होती
मेरा नाम लेकर बातें कितनी होतीं
जब भी कोई रोता उसे शक्ति देता
पराजय को जय में बस यूँ ही बदल देता
पानी की कल कल ध्वनि मुझसे होती
जब भी मैं उठता महाप्रलय होती
पर ये सत्य होता तो क्या ना होता?
इंसान ना होता, मैं पत्थर ही होता।

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© Snehil Srivastava