Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, July 27, 2015

आबोहवा
The Innocent Surroundings

आबोहवा
और ये महकी महकी सी सुबह
सुना है
ज़िन्दगी बसती है इनमें
कई दफ़ा
फूलों को खिलते देखा है
जब ओस की बूँदें
टप करके इनके पंखों पर
रुक जाती हैं
ज़िन्दगी चलने लगती है
कि जैसे पंख निकल आये हों
और इनके रंग इंद्रधनुषी हो चले हों
ऐसी सौम्यता, प्राकृतिक समरसता
देखकर
मन रुपी आँखों का अश्रुपूरित होना
हंसा जाता है।
-Snehil Srivastava

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© Snehil Srivastava