कोशिश की थी मैंने
हाथों में पानी पकड़ने की
निर्जीव हुए जीवन में
कुछ रंग भरने की
मुझको कहा किसी ने
बावरे मन, ना कर ये पागलपन
पानी हाथ से बस छू जायेगा
आँखें होंगी तेरी नम
मेरे उत्तर को सुनकर
वो आवाक् रह गया
सर उस बेचारे का
शरम से था झुक गया
"यदि कोशिशें ना होंगी
तो लक्ष्य कैसे मिलेगा
थक कर बैठने वाले को
ईश्वर भी जाने क्या कहेगा"
Picture credit: www.wallpaperswide.com
हाथों में पानी पकड़ने की
निर्जीव हुए जीवन में
कुछ रंग भरने की
मुझको कहा किसी ने
बावरे मन, ना कर ये पागलपन
पानी हाथ से बस छू जायेगा
आँखें होंगी तेरी नम
मेरे उत्तर को सुनकर
वो आवाक् रह गया
सर उस बेचारे का
शरम से था झुक गया
"यदि कोशिशें ना होंगी
तो लक्ष्य कैसे मिलेगा
थक कर बैठने वाले को
ईश्वर भी जाने क्या कहेगा"
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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