जब मुझे मेरी पहली कविता अच्छी नहीं लगी
तो मैंने सोचा क्यों ना आज मैं एक दूसरी कविता लिखूं
और लिखूं कुछ बातें दूसरों की
पहली कविता, पहली होकर भी हारी हुई सी थी
और दूसरी, दूसरों की तरह परायी
एक दूरी का एहसास है इसमें
शब्दों और मनोभावों के मध्य
इन असंख्य वस्तुओं का अस्तित्व
जीवित अथवा मृत
जिनसे दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं
कभी कभार अपनी लगती हैं
दूसरी नहीं
वरना इस पुराने पीपल के नीचे
क्यों कर इतने सारे टूटे ईश्वर पड़े होते
और ये सुखी फूल मालायें
जिनसे कभी महकती थी वायु
ये पहले तो कितने पूज्य थे
और आज दूसरों की भांति
त्यज्य दिए गए हैं कि जैसे
इनसे कभी कोई नाता ही नहीं था
और फिर ये चारों ओर का वातावरण
जिससे अच्छा ये दूसरा जीवन
ही दीख पड़ता है
असीम शांति
अविरल सुख
अनवरत संतुष्टि
अतुलनीय दृष्टि
तो मैंने सोचा क्यों ना आज मैं एक दूसरी कविता लिखूं
और लिखूं कुछ बातें दूसरों की
पहली कविता, पहली होकर भी हारी हुई सी थी
और दूसरी, दूसरों की तरह परायी
एक दूरी का एहसास है इसमें
शब्दों और मनोभावों के मध्य
इन असंख्य वस्तुओं का अस्तित्व
जीवित अथवा मृत
जिनसे दूर दूर तक कोई सरोकार नहीं
कभी कभार अपनी लगती हैं
दूसरी नहीं
वरना इस पुराने पीपल के नीचे
क्यों कर इतने सारे टूटे ईश्वर पड़े होते
और ये सुखी फूल मालायें
जिनसे कभी महकती थी वायु
ये पहले तो कितने पूज्य थे
और आज दूसरों की भांति
त्यज्य दिए गए हैं कि जैसे
इनसे कभी कोई नाता ही नहीं था
और फिर ये चारों ओर का वातावरण
जिससे अच्छा ये दूसरा जीवन
ही दीख पड़ता है
असीम शांति
अविरल सुख
अनवरत संतुष्टि
अतुलनीय दृष्टि
पहली कविता काश दूसरी होती!
-Snehil Srivastava
Picture credit: www.chandan2012-blogspot-com
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© Snehil Srivastava
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