हर टूटा सपना, किसी और के
अधूरे सपने पूरा करता है
मेरे भी कई सपने टूटे हैं
मेरे भी कुछ सपने पूरे हुए हैं
पर अब मैं ये नही चाहता
कि कोई और सपना टूटे
मेरे अधूरे सपनों के लिए
पर क्या पूर्णता की नियति
अपूर्ण होने तक ही सीमित है
सपनों को किसी सीमा में बांधना
उनके कोमल अस्तित्व को
जंजीरों में जकड़ने जैसा होगा
जिनमें बंधकर हर सपना
खिलने से पहले ही मुरझा जायेगा
यदि हर एक सपना
किसी अन्य सपने का सहाय्य हो
तो कोई भी सपना
कभी नहीं टूटेगा
और उसकी मुस्कराहट की महक
सारी वर्जनाओं को तोड़कर
दसों दिशाओं में बिखर जायेगी
जहाँ,
न कोई बंधन होगा, ना ही कोई सीमा
होगा तो बस-
एक सम्पूर्ण सपना
-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava
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