Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Monday, November 30, 2015

'भटका हुआ राही या कि...'
Innocent Traveler

कल रात जब मैं
बस यूँ ही अपने ख्यालों में खोया
कहीं से चला आ रहा था
या शायद कहीं जा रहा था,
मुझे एक भटका हुआ राही मिला
हंसी तब हो गयी
जब उसने मुझसे
अपनी भटकी हुई राह पूछ ली
मेरे खुद के सवाल अनगिनत हैं
मैं भला उसके सवाल का
क्या जवाब देता, उसे क्या राह बताता
फिर ना जाने यकायक उसे क्या हुआ
वो वही जमीन पर बैठ गया
और कुछ बुदबुदाने लगा
वो जमीन को घूरे जा रहा था
जैसे उससे बातें कर रहा हो
और फिर उसने अपनी आंखें बंद कर लीं
और अपनी नाक सिकोड़कर कुछ सूंघने सा लगा
शायद वो मद्धम मद्धम बहती हवा को
महसूस कर रहा था
सामने दीवार की आड़ पर ईंटों से बने चूल्हे
की अधजली राख, जिसे शायद किसी रिक्शेवाले ने
अपने एक वक़्त के खाने के लिए जलाया था,
को देखकर मैं कुछ सोचता इससे पहले वो
उछलकर उस राख से एक अंगार उठा लाया
और इस हाथ से उस हाथ खेलने लगा
मुझे तो लगा वो सनकी है
या फिर कोई विक्षिप्त।
उस रात का आकाश अर्ध चंद्र
और सैंकड़ों नक्षत्रों से भरा था
जिससे उसी पल जाने किस कारण से
बूँदें गिरने लगीं
और वो किसी शिशु की भांति जोरों से हंसने लगा
मैं कुछ समझ पाता कि वो उठकर
किसी अज्ञात दिशा में ओझल हो गया
अब तक भोर हो चुकी थी
और मेरी आँखें बोझिल
मुझे किसी भी ओर किसी कदम के
कोई से निशान नहीं दिख रहे थे
हाँ मेरे हाथों में कुछ छाले जरूर पड़े हुए थे
वो भटका हुआ राही ही था
याकि इस जीवन का सत्य कारण
ही भटक गया है अपनी राह



-Snehil Srivastava
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© Snehil Srivastava

1 comment:

  1. सबकी एक अंतहीन यात्रा है जीवन की ....चलते जाना है राहों में।
    बहुत सुन्दर

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