Path to humanity

Path to humanity
We cannot despair of humanity, since we ourselves are human beings. (Albert Einstein)

Saturday, January 4, 2014

पर आज मुझे लगता है Par aaj mujhe lagta hai - and My heart says


मैं आती भी तो भला कैसे, जब तुमने पुकारा ही नहीं,
साथ निभाती भी मैं किसका, जब तुमसे कोई सहारा ही नहीं।
तुम अपनी मशरूफ़ियों में मशरूफ रहे
मैं हर पल तुम्हारी यादों में मगशूल रही
तुम उलझे ही रहे सदा अपनी उलझनो में
मैं हमेशा तुम्हारे साथ से महरूम रही
समझती रही कि होगी तुम्हारी भी मजबूरियां बहुत
सहती रही मैंने रुसवाइयां बहुत
तुम अपने तुम में ही रह गए, मैं अपने आप में सिमटती रह गयी
रास्ते उलझते रह गये, दूरियां बढ़ती चली गयीं
कभी कुछ हफ़्तों की चुप्पी, कभी महीनों का सूनापन
कभी उन दूरियों का लम्बा सा कारवां बनता चला गया
फिर अचानक से कभी तुम सामने आ जाते
और ऐसा लगता कि तुम कहीं गए ही नहीं थे
बस यहीं थे, मेरे करीब।
पर आज मुझे लगता है,
कि तुम मेरे नहीं थे, कहीं नहीं थे, कभी नहीं थे।
                                                                                                - Anonynous



(NoteNo part of this post may be published, reproduced or stored in a retrieval system in any form or by any means without the prior permission of the author.)
© Snehil Srivastava

No comments:

Post a Comment