"....दो दोस्त 'हँसी' और 'ज़िन्दगी'
जब मिले दोनों चुपचाप थे;
फिर भी दोनों साथ थे
ज़िन्दगी को जीना हँसी ने सिखाया,
हँसी को हँसना ज़िन्दगी से आया
ऐ- दोस्त ज़िन्दगी !!
हँसी ने कहा-
ज़िन्दगी तुम जी भर जियो
अब ज़िन्दगी से भी रहा ना गया,
बोला-
हँसी तुम सदा ऐसे ही हँसती रहो
दोनों एक दुसरे को सोच रहे थे,
और अपने लिए दोनों ही चुप थे
ज़िन्दगी के मायने कहाँ छुपे हैं
वो चल रहे हैं या कहीं रुके हैं
हँसी भी हँसना भूल सी गई है
वो नम आँखों से हँस सी रही है
दो दोस्त हँसी और ज़िन्दगी
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